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आज जहाँ सभी लोग तरक्की की राह में अग्रसर है वहीँ आज का युवा पुराने संस्कारो को भूलता जा रहा है जैसा की कहीं जाने से पहले बड़ो का पैर छु कर आशीर्वाद लेना जो ब्बाय डैड या मोम, ब्बाय दादाजी या दादीजी, जवाब भी उनको वैसा ही मिलता है क्योकि आज के युवा को समझाना बड़ा मुश्किल हो गया है! पैर छुना पुराना फैशन मानने वाले युवा को शायद हम लोग आशीर्वाद की महत्ता समझा नहीं पा रहे है या हम लोग भी इस दौर को अपना कर इसे झंझट समझ कर पल्ला झाड़ लेते है जबकि हकीकत यह है की पैर छु कर लिया आशीर्वाद अन्दर से आता है जहाँ ईशवर का निवास होता है की जाओ ईशवर तुम्हारी सहयता एवं रक्षा करे करे और आशीर्वाद देने वाले का हाथ उस मुद्रा में उठ जाता है जिस मुद्रा में ईशवर का हाथ सदैव रहता है ! क्या कारन है वैसा भाव नमस्ते या बाय कहना में नहीं उठता! मैंने जब इस बारे में कई बुजर्गो से पूछा तो सबका जवाब लगभग एकसा था की जब हम किसी को बाय या टाटा करते है उस स्थिथि में जाने वाला अपने जाने की सुचना मात्र देता है और पैर छुकर जाने वाला आपसे जाने से पहले एक सुरक्षा कवच जो मार्ग में उसकी रक्षा करे और सुरक्षित वापस घर आने तक साथ रहे और सफलता चाहता है जो की केवल ईशवर ही दे सकते है यही कारन है जब कोई पैर छूता है तो पैर छुने वाला भक्त और जिसके पैर छु रहा है वह इश्वर प्रदत्त हो जाता है और अपना हाथ उठा देता है!
हाथ उठा का दिया हुआ आशीर्वाद हमेश फलीभूत होता है जिससे उसको सुरक्षा कवच और सफलता मिलती है बशर्ते पैर छुने वाला दोनों हाथ से दोनों पैर छुए, क्या कारन है की हाथ उठा कर दिया हुआ आशीर्वाद फलीभूत होता है और किस व्यक्ति विशेष का आशीर्वाद सैदव फलीभूत होता है उसका कारन है उस व्यक्ति का निःस्वार्थ सदाचार उसके गुण उसका खानपान प्रभु के प्रति उसकी आस्था जो उसको ईशवर प्रद्दत बनता है और यही सब जो उसके हाथ उठाने मात्र से अद्रश्य किरणों के रूप में आशीर्वाद लेने वाले के चारो तरफ एक घेरा बना लेती है जो सुरक्षा कवच का काम करती है और उसको उसके कार्य जिसके लिए वो आशीर्वाद चाहता है में सफलता दिलाती है
यह मेरा अपना अनुभव भी है की कई बार अपने किसी बड़ो के पैर छूकर या किसी महात्मा और सज्जन पुरुष के पैर छुकर जाने पर मुश्किल काम भी ऐसा चुटकियों में हो जाता है जो की हमने सपने में भी नहीं सोचा था यही कारन है की हमारे माता पिता ने सदैव ही हमे पैर छुने की आदत डालने के लिए न केवल दबाव बनाया बल्कि उसकी महत्ता भी बताई! मेरा ये लेख लिखने का मकसद भी यही है की युवा इसे अपनी आदत में शामिल करे और अपनी सफलता और सुरक्षा का मार्ग प्रशश्त करे
आशुतोष गुप्ता
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