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आतंक के दशक में उभरा मजबूत भारत

ASHUTOSH GUPTA
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जैसे जैसे साल २०१० जाने को है वैसे वैसे एक दशक भी समाप्ति की और है और साल २०११ में हम एक नए साल के साथ एक नए दशक का स्वागत करने को नई  उमंग के साथ तैयार है

साल २०१० भ्रस्ट्राचार  के साल के रूप में याद किया जायेगा वहीँ यह साल जनता के जागरूक होने के साल के रूप में भी जाना जायेगा जिसका उदाहरण जनता ने बिहार के चुनावों में दिया साथ ही साथ यह साल आपसी भाईचारे और न्याय पालिका के प्रति अपना विश्वास कायम के रूप में जाना जायेगा जिसमें राम जन्मभूमि के न्याय्याल्ये के निर्णय का सभी पक्षों ने स्वागत किया बल्कि विश्व को भी दिखा दिया की भारतीय जनता अब समझदार हो गयी है गाहे बेगाये राजनेताओं ने फिर अपनी उसी सोच को उजागर किया जो पिछले दस सालों से करते आ रहे है और कई बार धार्मिक भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया और कश्मीर को लेकर बयानबाजी की जिसका जनता ने तीखा विरोध किया!

भारत की दो मुख्य पार्टियों को अब यह समझ जाना चाहिए की धार्मिक राजनीती की अब हमारे यहाँ कोई जगह नहीं और विकास , नागरिक सुरक्षा और आम जरूरत को मुख्य मुद्दा बनाना है भ्रस्ट्राचार एक ऐसा मुद्दा है जिसकों लेकर जनता त्रस्त  है और इससे मुक्ति चाहती है चाहे इसकों लेकर सरकार को कड़े कदम क्यों न उठाने पड़े लेकिन जनता अब इसको और झेलने को तैयार नहीं और इससे इतर कोई मुद्दा जनता को मंजूर नहीं यही कारन है बिहार में केंद्रीय सत्तादारी पार्टी ने मुहं की खाई है तुस्टीकरण को लेकर कई राजनीती पार्टियाँ अब भी वही सोच रखे है लेकिन उनकी ये सोच गलत साबित होगी इतना तो तय है! भारतीय जनता ने न्यायपालिका में जो इस बार अपनी आस्था जताई है वो काबिले तारीफ़ है और नेताओं के लिए एक सबक भी जनता चाहती है की उनके द्वारा दिया जाने वाले टैक्स की जगह उनके देश में हो स्विस बैंकों में नहीं !

साल २००१ यानि दशक की शुरुआत में ही आतंकियों के द्वारा अमेरिका पर अघोषित हमले ने पुरे विश्व को सकते में डाल दिया और ये सोचने को मजबूर कर दिया की कहीं ये दशक आतंक की भेट तो नहीं चढ़ने वाला और ये सोच गलत भी नहीं थी इसी वर्ष आतंकियों ने भारतीये संसंद पर आक्रमण करके ये जता दिया की वो जो सोच रहे है वही सही है और इसका असर भारत पर सबसे ज्यादा दिखा एक के बाद एक भारत के विभन्न शहरों में आतंकियों ने हमले किये और पूरे दशक भारत की जनता को परेशान रखा और दशक के अंत आते आते भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को कई दिन तक हिलाए रखा जिसकों भारत ने क्या पुरे विश्व ने देखा और भारत की कमजोर सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किये! साल २०१० और दशक के जाते जाते बनारस को फिर निशाना बनाया गया और भारतीय सुरक्षा पर प्रशन चिन्ह फिर लग गया बयान राज्ये और केंद्रे सरकार दोनों ने दिए लेकिन सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने और भविष्य में और मजबूत सुरक्षा देने की बात किसी ने नहीं कही !

अमेरिका ने दशक की शरुआत में हुए उस पर हमले को चुनौती के रूप में लिया जिसके लिए उसने छाज को भी फूंक फूंक कर पीने की कवायद को सार्थक किया इसके लिए कई बार उसने अन्य देशो के राजनेताओं और चर्चित हस्तियों को भी सुरक्षा के नाम पर बेइज्जत किया लेकिन उसने इसके लिए अपने देश की सुरक्षा का हवाला देते हुए न केवल विरोधियों के मुहं बंद किये बल्कि अपनी जनता और वहां आने वाले व्यापारियों और भ्रमणकारियों को जता  दिया की अमेरिका से सुरक्षित जगह कोई नहीं और भारत के राजनेताओं ने अपनी कमजोरियों को और आपसी फूट को जगजाहिर करते हुए हमेशा  इन हमले के लिए न केवल पडोसी देश पर सवाल खड़े किये बल्कि सुरक्षा के नाम पर अमेरिका पर निर्भर होने में ज्यादा उत्सुकता दिखाई जिसका असर यह हुआ की आतंकी और ज्यादा प्रभावी हुए और पूरे विश्व में यह सन्देश गया की एक छोटे से देश भी भारत अपनी सुरक्षा नहीं कर सकता इसके लिए उसकों अमेरिका की जरूरत पड़ती है हमारे राजनेताओं को अब यह समझ लेना चाहिए की सुरक्षा के नाम पर अब भारतीय जनता आप से आपेक्षा रखती है किसी और देश से नहीं भारतीय जनता चाहती है की भारत के राजनेता ये बयान दे की हम अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है इसके लिए हमें किसी और देश की जरूरत नहीं आने वाले समय में सुरक्षा एक अहम् मुद्दा बनने वाला है

यह दशक आर्थिक और सामाजिक स्तर पर एक मजबूत भारत का निर्माण के रूप में भी याद किया जायेगा भारत ने जहाँ आर्थिक रूप से चारों और अपना डंका बजाया जिसमें समस्त औधोगिक घरानों ने अभूतपूर्व उप्लाभ्दी हासिल की वो चाहे मित्तल ग्रुप हो या टाटा या अम्बानी या हीरो ,सभी ने बहार  के देशों की कपनियों का अधिग्रहण कर ये जाता दिया की भारतीये व्यापारी किसी से कम नहीं यही नहीं आर्थिक मंदी ने भी भारत को एक मजबूत आर्थिक देश का दर्जा दिलाने में महत्त्व पूर्ण योगदान दिया और सफलता दिलाई भारत ने  दुनिया को दिखा दिया की आर्थिक रूप से वह कितना शक्ति शाली देश है यही नहीं अन्य देशो में हुए सम्मेलनों में भारत ने एक जिम्मेदार देश के रूप में अपना नाम दर्ज किया और दिखाया की विश्व के महत्व पूर्ण फैसलों में भारत की रजामंदी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता!

साल के और दशक के अंत महत्वपूर्ण देशों के राजनेताओं ने देश में आकर न केवल इसको सलाम किया बल्कि  पुरे विश्व को बताया भारत से बेहतर देश कोई नहीं इन सभी नेताओं ने जहाँ अपने देशो के लिए भारत से काम और व्यापार माँगा बल्कि जय हिंद का नारा भी लगाया लेकिन भारत के नेता आपसी फूट के कारन यहाँ भी कमजोर ही नजर आये और बदले में कुछ भी हांसिल नहीं कर पाए !

अंत में भारत की न्यायपालिका की तारीफ़ करना नहीं भूलूंगा की उन्होंने अपना सामाजिक दयित्वे निभाने में कोई कसर  नहीं छोड़ी और कई सामाजिक मुद्दों पर न केवल सरकार से सवाल जवाब किया बल्कि कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय सुनाया लेकिन थोड़ी सी कमजोर वो जरूर दिखाई दी जब वो पकडे गए आतंकियों को सजा दिलवाने में नाकाम रही और वो अगले वर्ष जनता को मुहं चिड़ाते रहेंगे इस सवाल का जवाब न केवल भारत का अवाम मांग रहा है बल्कि पूरा विश्व मांग रहा है की पकडे गए अताकियों पर वो इतनी नरम क्यों है और उनकी सजा में इतनी देरी क्यों ? आने वाले साल और दशक में न्याय पालिका को और मजबूती दिखानी ही होगी क्योकि भारत की न्यायपालिका विश्व की बेहतरीन न्यायपालिका में से एक है !

आने वाला वर्ष और दशक न केवल भारत के नाम होगा बल्कि यहाँ की जनता को और उनकी सोच को उच्चतम शिखर पर ले जायेगा इसी कामना के साथ

जय हिंद

आशुतोष दा

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